Class 8 Hindi Grammar Chapter 29 निबंध लेखन (Nibandh Lekhan). Here we will study about how to write an impressive essay in Hindi, what are the properties of a good Nibandh. All the contents related to Nibandh Lekhan are updated for session 2024-25 for CBSE Board as well as State Boards like UP Board, MP Board, Gujrat, Rajasthan, etc. Samples of निबंध लेखन are given here, so that students can take help to write new Nibandh.
Class 8 Hindi Grammar Chapter 29 निबंध लेखन
कक्षा 8 हिन्दी व्याकरण पाठ 29 निबंध लेखन
कक्षा: 8 | हिन्दी व्याकरण |
अध्याय: 29 | निबंध लेखन |
निबंध लेखन किसे कहते हैं?
विचार, भाव तथा अभिव्यक्ति को प्रकट करने का सबसे उत्तम साधन है। अच्छे निबंध के गुण हैं:
- 1. निबंध का आरंभ रोचक होना चाहिए।
- 2. निबंध विषय के दायरे में होता है।
- 3. शुद्ध वर्तनी तथा विराम चिह्नों का ध्यान रखा जाता है।
- 4. निबंध की भाषा विषय के अनुकूल होनी चाहिए।
- 5. विषय की जानकारी को श्रृंखलाबद्ध तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस
नेताजी सुभाषचंद्र बोस नेताजी सुभाषचंद्र बोस मूलतः कलकत्ता (अब कोलकाता) के निवासी थे, किंतु इनके पिता कटक में मजिस्ट्रेट थे। वहीं शिशु सुभाष का जन्म 23 जनवरी, 1897 को हुआ था। बालक सुभाष की आरंभिक शिक्षा-दीक्षा कटक में ही हुई थी। उनके पिता यद्यपि कटक (उड़ीसा) में बस गए थे, किंतु उन्हें कलकत्ता आना-जाना पड़ता था। श्री सुभाषचंद्र बोस 22 वर्ष की युवा उम्र में भारत छोड़कर पढ़ाई करने के लिए 15 सितंबर 1919 को लंदन चले गए थे। उसी समय प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हुआ था। यद्यपि इस युद्ध से अंग्रेजों को काफी धक्का लगा था। हाँ! सुभाषजी के इंग्लैंड जाने से पहले जलियाँवाला बाग हत्याकांड जरूर हुआ था, जिससे सारा भारत देश तिलमिलाया हुआ था।
इंग्लैंड में इस खबर को ज्यादा विस्तार से छपने नहीं दिया गया। इसलिए सुभाष भी इस घटना से ज्यादा अवगत नहीं थे। महात्मा गाँधी और कुछ नेतागण लोगों को जागरूक कर रहे थे। सुभाष बाबू के लिए एक और मुश्किल थी। वे अपने पिता से किए हुए वादे कि आई. सी. एस. परीक्षा पास करके लौटना है, की वजह से, वे काफी तल्लीनता से अध्ययन करने में जुटे हुए थे। अपने उद्देश्य में सफल होने के पश्चात् सुभाष को भारत की स्थिति के बारे में पता चला। उन्होंने अंग्रेजी सरकार की नौकरी न करके देशसेवा का कार्य करने का निर्णय लिया। भारत में आकर वे सर्वप्रथम महात्मा गाँधी से मिले और अहिंसा और असहयोग आंदोलन में कांग्रेस का साथ दिया।
सुभाष बाबू की कार्यनिष्ठा देखकर उन्हें बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया और इसी समय “साइमन कमीशन” की नियुक्ति का विरोध करने के लिए एक आंदोलन छेड़ा गया “साइमन कमीशन वापस जाओ”। इसी आंदोलन के पश्चात् वे सन् 1928 में अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने और कालांतर में उन्होंने अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की बागडोर अपने हाथ में ली और सन् 1931 तक उसके अध्यक्ष बने रहे। कांग्रेस का अध्यक्ष चुने जाने के बाद, गाँधीजी और अन्य उदारवादी (नर्म दल वाले) दल से मतभेद होने के कारण मई 1939 में कांग्रेस से इस्तीफा देकर अपनी फारवर्ड ब्लाक नाम पार्टी बना ली।
निर्भीक सुभाष चंद्र बोस बिना ज्यादा परीक्षा के भारत को ब्रिटिश दासता से आजाद कराने के पक्षधर थे। 1942 जनवरी में आजाद हिंद फौज की स्थापना हुई। आजाद हिंद फौज का उद्देश्य भी यही था कि भारत को हाथ जोड़कर और चरखा चलाकर नहीं, अपितु महाशक्ति का उपयोग करके आजाद कराया जाए। स्वतंत्रता के इस अमर सेनानी का दुःखद अंत कैसे हुआ, अथवा वे अभी तक जीवित हैं- चर्चा के विषय हैं। कुछ लोगों का कथन है कि एक जापानी जहाज में जिसमें ये भी सवार थे, आग लग जाने के कारण इनकी मृत्यु हो गई। आज सुभाषजी, जिन्हें भारतवासी नेताजी के प्रिय संबोधन से पुकारते हैं, हमारे बीच में नहीं हैं, किंतु उनका नाम भारत की स्वतंत्रता के अग्रणी सेनानियो में सदा अमर रहेगा।
समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं का महत्त्व
लोकतंत्र में समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं का काफी महत्त्व होता है। समाचार पत्र लोकमत को व्यक्त करने का सबसे सशक्त साधन है। जब रेडियो तथा टेलीविजन का ज्यादा जोर नहीं था, समाचार पत्रों में छपे समाचार पढ़कर ही लोग देश-विदेश में घटित घटनाओं की जानकारी प्राप्त किया करते थे। अब रेडियो तथा टेलीविजन सरकारी क्षेत्र के सूचना के साधन माने जाते हैं। अत: तटस्थ और सही समाचारों के लिए ज्यादातर लोग समाचार पत्रों को पढ़ना अधिक उचित और प्रामाणिक समझते हैं। समाचार पत्र केवल समाचार अथवा सूचना ही प्रकाशित नहीं करते वरन् उसमें अलग-अलग विषयों के लिए अलग-अलग पन्ने और स्तंभ निर्धारित होते हैं।
पहला पन्ना सबसे महत्त्वपूर्ण खबरों के लिए होता है। महत्त्वपूर्ण में भी जो सबसे ज्यादा ज्वलंत खबर होती है वह मुख पृष्ठ पर सबसे ऊपर छापी जाती है। पहले पृष्ठ का शेष भाग अन्यत्र छापा जाता है। अखबार का दूसरा पन्ना ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं होता उसमें प्रायः वर्गीकृत विज्ञापन छापे जाते हैं। तृतीय पृष्ठ पर ज्यादातर स्थानीय समाचार तथा कुछ बड़े विज्ञापन छापे जाते हैं। चौथा पृष्ठ भी प्रायः खबरों तथा बाजार भावों के लिए होता है। पाँचवें पृष्ठ में सांस्कृतिक गतिविधियाँ और कुछ खबरें भी छापी जाती हैं। बीच के पृष्ठ के दाहिनी ओर भी महत्त्वपूर्ण लेख, सूचनाएँ एवं विज्ञापन दिए जाते हैं। अगले पृष्ठों पर स्वास्थ्य, महिला मंडल, बालबाड़ी जैसे स्तंभ होते हैं। अंतिम पृष्ठ से पहले खेल समाचार, सोना, चाँदी, जिन्सों आदि के भाव होते हैं। कुछ अखबार बहुत चर्चित कंपनियों के शेयर भाव अपने पाठकों के लिए छापते हैं। अंतिम पृष्ठ पर पहले पृष्ठ का शेष भाग तथा अन्य महत्त्वपूर्ण खबरों को छापते हैं।
पहले अखबार केवल इकरंगे हुआ करते थे। उसमें छापे गए चित्र ब्लैक एण्ड ह्वाइट होते थे। अब छपाई अथवा मुद्रण कला में काफी प्रगति हुई है जिसकी वजह से अखबारों में अनेक प्रकार के आकर्षक रंगीन चित्र भी छापे जाते हैं। रविवारीय और बुधवारीय परिशिष्टों में कहानियाँ, कविताएँ, निबंध और उत्कृष्ट विज्ञापन छापे जाते हैं। अखबार का मुख पृष्ठ काफी अच्छा होना चाहिए। कुछ पाठक तो अच्छा संपादकीय तथा मोटी खबरें पढ़ने के लिए ही अखबार खरीदते हैं। कुछ अखबार ऐसे होते हैं जिनमें रिक्तियों, खाली स्थानों की खबरें काफी विस्तार से छापी जाती हैं। अखबार कई प्रकार के होते हैं दैनिक, त्रिदिवसीय, साप्ताहिक, पाक्षिक तथा मासिक अखबार भी होते हैं। आमतौर से दैनिक समाचार पत्र ही ज्यादा लोकप्रिय होते हैं। कुछ साप्ताहिक अखबार होते हैं जो पूरे सप्ताह की गतिविधियों का लेखा-जोखा छापते हैं।
अखबार के बाद पत्रिकाओं का भी अपना एक विशिष्ट महत्त्व है। पत्रिकाएँ ज्यादातर विषय प्रधान तथा अपने एक सुनिश्चित उद्देश्य को लेकर निकाली जाती हैं। कुछ पत्रिकाएँ केवल नवीन कथाकारों की कहानियाँ ही छापती हैं, सारिका, माया आदि में पहले कहानियाँ छपा करती थीं। कई पत्रिकाएँ ज्योतिष जैसे विषयों की जानकारी के लिए ही छापी जाती हैं। इंडिया टुडे साप्ताहिक पत्रिका है जो अंग्रेजी तथा हिंदी दोनों भाषाओं में छपती है। इसमें ज्यादातर राजनीतिक समाचार होते हैं। अखबार स्वतंत्र होने चाहिए और उसमें वही सामग्री छपनी चाहिए जो सत्य, शिव तथा सुंदर हो। परंतु ऐसा नहीं हो पाता। इनके स्वामी बड़े-बड़े पूंजीपति ही होते हैं, उनके संबंध विभिन्न राजनीतिक दलों से होते हैं। जिसके कारण कोई भी अखबार विचारों की अभिव्यक्ति पूरी तरह से नहीं रख पाता। अवसर मिलते ही वह पार्टी विशेष का समर्थक बनकर उसी का गुणगान करने लगता है।
पत्रिकाओं की स्थिति अखबारों से थोड़े भिन्न होती है। किंतु जो पत्रिकाएँ राजनीति से जुड़ी होती हैं उन्हें अकसर परेशान होना पड़ता है। माया और मनोहर कहानियाँ जैसी पत्रिकाएँ हलचल मचाने वाली पत्रिकाएँ हैं। कोई-न-कोई धमाका करना इनका काम है। अतएव ऐसी पत्रिकाओं को अपने दृष्टिकोण में सुधार लाना चाहिए। वर्तमान युग में अखबार एवं पत्रिकाओं का महत्त्व निरंतर बढ़ता जाता है। प्रायः प्रत्येक पढ़ा-लिखा व्यक्ति अखबार पढ़ने के लिए उत्सुक अवश्य होता है। इसलिए अखबार एवं पत्रिकाओं के मालिकों एवं संपादकों को चाहिए कि वे अपने दायित्व को समझें तथा समाज की सहज उन्नति के लिए सदा सचेत रहकर ऐसी खबरें छापें जो सही तथा समन्वयवादी हों।
दीपावली
दीपावली हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। इसे प्रतिवर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। दीपावली एक ऐसा पर्व है जिसके आगे-पीछे कई पर्व मनाए जाते हैं। धनतेरस से इस पर्व का आरंभ होता है। इस दिन लोग लक्ष्मी, गणेश, बरतन तथा पूजा की सामग्री खरीदते हैं। धनतेरस से अगले दिन व्यापक रूप से सफाई की जाती है तथा भगवती लक्ष्मी के आगमन के लिए घर-बाहर काफी सजावट की जाती है। इसे छोटी दीपावली कहा जाता है। इस दिन लोग घर के आस-पास सरसों के तेल के दीए जलाकर रखते हैं। इस दिन से अगले दिन दीपावली का महापर्व आता है।
इस पर्व में मिठाई, खील, बताशे, चीनी के खिलौने तथा अन्य सजावटी सामान पुष्पमालाएँ धूप एवं अगरबत्तियाँ आदि अवश्य खरीदी जाती हैं। लोग इस अवसर पर अपने मित्रों और संबंधियों को मिठाइयाँ और उपहार देते हैं। शाम को दीपक जलाए जाते हैं, और पूजन की तैयारी की जाती है। लक्ष्मी और गणेश जी की प्रतिमा को स्नान कराकर चंदन, धूप, पुष्पमाला आदि चढ़ाकर विधिवत् पूजन करके प्रसाद समर्पित किया जाता है। कुछ लोग दीपावली के दिन रात 12 बजे भी भगवती लक्ष्मी की पूजा करते हैं।
दीपावली के पर्व की शुरुआत कब से हुई इसके विषय में अनेक कथाएँ हैं, जिनमें सबसे ज्यादा प्रचलित कथा यह है कि रावण का वध करने के उपरांत जब भगवान राम अयोध्या वापस आए थे, तो लोगों ने उनके स्वागत के लिए घर, बाहर सभी जगह दीपक जलाए थे। दीपक जलाने का रिवाज तभी से चला आ रहा है। इस अवसर पर श्रीराम की पूजा करने का विधान होना चाहिए था, लेकिन आज लोग लक्ष्मी-गणेश की पूजा करते हैं। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार लक्ष्मी समृद्धि तथा धन-संपत्ति की देवी हैं। भगवान गणेशजी मोदकप्रिय तथा आमोद और सुख देने वाले हैं। वे विद्या के समुद्र तथा बुद्धि के देने वाले हैं। गणेशजी की इन्हीं विशेषताओं के कारण शायद उनकी अर्चना शुरू की गई होगी।
इस प्रकार दीपावली की विशेषता है कि आराधक जहाँ एक ओर धन लक्ष्मी, श्री-समृद्धि चाहता है, वहीं ज्ञान-विद्या-बुद्धि का भी अभिलाषी है। दीपावली का पर्व दोनों प्रकार की आकांक्षाओं की पूर्ति करने का अवसर देता है। दीपावली का पर्व ऐसे समय आता है, जब न तो ज्यादा गर्मी होती है और न ज्यादा जाड़ा पड़ता है। वर्षा ऋतु के बाद पैदा हुए कीड़े-मकोड़े, मक्खी-मच्छर, दीपावली के त्यौहार के सिलसिले में की जाने वाली सफाई से समाप्त हो जाते हैं। दीपावली के त्योहार में जहाँ अनेक गुण हैं, वहीं उस त्योहार के कुछ दुर्गुण भी हैं। जैसा कि पहले लिखा जा चुका है कि इस त्यौहार के साथ पाँच त्यौहारों का मेल-मिलाप है। धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा (प्रतिपदा का) भ्रातृ द्वितीया। इन पाँच दिनों तक खान-पान में कुछ न कुछ व्यतिक्रम होता ही रहता है। इसलिए इस त्यौहार के आस-पास के दिनों में खाने-पीने में पूरा संयम बरतना चाहिए। दीपावली एक खर्चीला त्योहार है। कुछ लोग कर्ज लेकर भी इस त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं। नए कपड़े पहनते हैं, कार्ड भेजते हैं तथा डटकर मिठाई खाते हैं। नतीजा यह होता है कि आम नागरिक को पूरा महीना तंगी से काटना पड़ता है। इस प्रकार यह त्यौहार आम लोगों के लिए सुखकारी होने की जगह दु:खकारी सिद्ध होता है। दीपावली के पर्व के विषय में एक आम धारणा यह भी है कि इस त्योहार के दिन जुआ खेलने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं तथा वर्ष भर धन आता रहता है।
ऐसे अंधविश्वास के कारण लक्ष्मी और गणेश के पूजन का यह महापर्व लोगों के आकस्मिक संकट का कारण बन जाता है। कुछ लोग जुए में अपना सर्वस्व एक ही रात में गँवा बैठते हैं। सारांश यह है कि दीपावली एक मंगलमय त्योहार है जिसे व्यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों प्रकार से मनाने की आवश्यकता है। इस पर्व को सार्वजनिक रूप से धूमधाम के साथ मनाया जाना चाहिए, ताकि हम अपने पौं-त्योहारों के इतिहास और महत्त्व को अधिक अच्छी तरह से जान सकें और उनमें यदि कहीं कोई बुराई हो, तो उसे दूर भी कर सकें। दीपमाला निश्चय ही हमें अंधकार से हटाकर प्रकाश की ओर ले जाती है।