Class 7 Hindi Grammar Chapter 4 वर्तनी विचार (Vartani Vichar). Here we will discuss about Vartani and its type in Hindi Vyakaran revised and modified for CBSE and State board session 2024-25. Definition with examples of the entire topic related to वर्तनी विचार are given with complete explanation. Practice here to score more in school tests and terminal exams. There is no requirement of login to access the contents on Tiwari Academy.
भाषा के दो रूप हैं- उच्चरित तथा लिखित। उच्चरित भाषा का मूल रूप है, जबकि लिखित आश्रित रूप है। हम बोलकर अपने मन के विचार प्रकट कर सकते हैं, यह क्षणिक होता है, जबकि लिखकर प्रकट किए गए विचार स्थायी बन जाते हैं। लिखित रूप स्थायी तथा व्यापक बना रहे, इसके लिए आवश्यक है कि लेखन व्यवस्था-लिपि चिह्न, उनका संयोजन, शब्दों की वर्तनी, विराम-चिह्न आदि लंबे समय तक एकरूप में रहें, बदलें नहीं।
हिंदी-गद्य के विकास के साथ जब गद्य का प्रयोग ज्ञान-विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए होने लगा तो लेखकों, संपादकों ने स्थानीय परंपरा के अनुसार शब्दों की वर्तनी को अपनाया, जिससे वर्तनी में एकरूपता आई। ‘राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान परिषद्’ ने भी वर्तनी की एकरूपता को बनाए रखने के लिए कुछ नियम निर्धारित किए हैं, जैसे:
1. अनुनासिक / अनुस्वार
2. व्यंजन का मात्रा रूप
3. संयुक्त व्यंजन और व्यंजन द्वित्व।
वर्तनी के अन्य नियम
1. परस्पर चिह्न
(क) संज्ञा शब्दों में परसर्ग अलग से लिखा जाता है, जैसे- राम को, राम ने, राम के लिए।
(ख) सर्वनाम शब्दों के साथ परसर्ग मिलाकर लिखा जाता है, जैसे- उसमें, उसको, उस पर आदि, किंतु यदि सर्वनाम के साथ दो परसर्ग आ रहे हों तो पहला सर्वनाम के साथ जुड़ेगा और दूसरा अलग से लिखा जाएगा, जैसेः उसके लिए, उसमें से, इनके द्वारा।
(ग) सर्वनाम और परसर्ग के बीच यदि निपात ही, तक आदि आ जाएँ तो परसर्ग अलग लिखा जाता है, जैसे- आप ही के द्वारा, उस तक को।
2. क्रिया संबंधी
(क) संयुक्त क्रियाओं को सदैव अलग-अलग लिखा जाएगा, जैसे- जा रहा है, पढ़ चुके हैं, रोता चला जा रहा था।
(ख) पूर्वकालिक क्रिया सदैव धातु में जोड़कर लिखी जाएगी, जैसे- पढ़कर, सोकर, हँसकर।
3. योजक का प्रयोग
(क) सामासिक शब्दों को (द्वंद्व को छोड़कर) एकसाथ बिना योजक का प्रयोग किए लिखना चाहिए, किंतु तत्पुरुष समास में यदि अर्थ-भ्रम की संभावना हो तो वहाँ योजक का प्रयोग करना चाहिए जैसे- भू-तत्त्व आदि।
(ख) जैसा आदि से पूर्व योजक चिह्न का प्रयोग अवश्य करना चाहिए, जैसे- उस-सा, आप-जैसे।
(ग) जहाँ “य” मूल शब्द के तत्त्व के रूप में हो, वहाँ इसका “इ” रूप में परिवर्तन नहीं होगा, जैसे- स्थायी, अव्ययीभाव, दायित्व, किंतु जहाँ “य” श्रुतिमूलक है, वहाँ यह इ / ए के रूप में बदल जाएगा, जैसे- गए, नए, नई, जाएगा आदि का प्रयोग अवश्य करना चाहिए, जैसे- डॉक्टर, कॉलेज।
(क) कुछ तत्सम शब्दों के अंत में विसर्ग का प्रयोग हो रहा है, उन्हें अवश्य करना चाहिए, जैसे- प्रातः, संभवतः, वस्तुतः, किंतु अत: एव न लिखकर अतएव ही लिखना चाहिए।
(ख) सम्मानार्थक श्री और जी को सदैव अलग ही लिखना चाहिए, जैसे- श्री रामलाल, महात्मा जी, श्री मोहनलाल नेहरू जी।
(ग) शिरोरेखा का प्रयोग अवश्य होना चाहिए। पूर्ण विराम के लिए (।) का ही प्रयोग होगा।
संयुक्त वर्ण
(क) जिन व्यंजनों के अंत में खड़ी पाई है, उनका संयुक्त रूप खड़ी पाई को हटाकर इस प्रकार बनाना चाहिए। व्याकरण, कुम्हार, अध्याय आदि।
(ख) क और फ़ के संयुक्ताक्षर : चक्कर, रक्त, गिरफ्तार इस तरह बनाने चाहिए। चक्कर, गिरफार इस तरह नहीं।
(ग) ट, ठ, ड, ढ, द, ह को संयुक्त करते समय हलंत चिह्न लगाकर ही लिखना चाहिए, जैसे- ब्रह्मा, विद्यालय, लट्टू, बुड्ढा, लट्ट, बुड्ढा इस तरह नहीं।
(घ) र को निम्न तरह से संयुक्त करना चाहिए, प् + र = प्रकाश, र् + म = कर्म, ट् + र = राष्ट्र
(ङ) श् + र = श्र इसे इसी तरह लिखना चाहिए, श की तरह नहीं।
विभक्ति चिह्न
(क) हिंदी में संज्ञा शब्दों के विभक्ति चिह्न अलग लिखने चाहिए, जैस- सीता ने, हनुमान को, बाजार से, मोहन के लिए, चाँदी की, घर में, पेड़ पर आदि। सर्वनाम शब्दों के विभक्ति चिह्न मिलाकर लिखने चाहिए, यथा- उसमें, उसको, उससे, उसका, उसने, उस पर आदि।
(ख) यदि सर्वनाम के साथ दो विभक्ति चिह्न हैं, तो पहले को मिलाकर तथा दूसरे को अलग लिखना चाहिए, जैसे- उसके लिए, उनके द्वारा, इनमें से।
(ग) यदि सर्वनाम और विभक्ति के बीच-ही, तक, भी, तो, मात्र, भर आदि निपात हों तो विभक्ति को सर्वनाम से अलग लिखना चाहिए, यथा-उस तक ही, मुझ तक, मेरे ही लिए, मुझ पर।