Class 7 Hindi Grammar Chapter 38 निबंध लेखन (Nibandh Lekhan). Hindi Vyakaran contents are in updated format according to CBSE Curriculum 2024-25. Sample Nibandh are given below so that students can take the hints from these Nibandh. State board students also take the benefits of these grammar contents for class 7 as it is based on State board Syllabus also.
Class 7 Hindi Grammar Chapter 38 निबंध लेखन
कक्षा 7 हिन्दी व्याकरण पाठ 38 निबंध लेखन
कक्षा: 7 | हिन्दी व्याकरण |
अध्याय: 38 | निबंध लेखन |
निबंध लेखन क्या है?
निबंध का अर्थ है-बँधा हुआ। किसी विषय पर अपने मन के भावों या विचारों को नियंत्रित ढंग से लिखना निबंध कहलाता है।
निबंध किसी विषय-विशेष पर केंद्रित वाक्य-संरचना होती है। निबंध-लेखन से पहले यह सुनिश्चित कर लेना होता है कि हम इस विषय पर क्या कहना चाहते हैं। अपने विचारों को पहले बिंदुओं में विभाजित कर लेना चाहिए, फिर अपनी बात को विस्तार देना चाहिए। किसी विषय पर अपने मन के भावों या विचारों को नियंत्रित ढंग से लिखना निबंध कहलाता है। निबंध लिखते समय भाव-सामग्री को सुंदर ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए। इसकी भाषा सरल, प्रवाहमयी, सरस व रोचक होनी चाहिए। निबंध लिखते समय दिए गए विषय के सभी पक्षों पर क्रमानुसार प्रकाश डालना चाहिए। सामाजिक, राजनैतिक तथा आर्थिक विषयों पर लिखे गए गंभीर लेख भी निबंध की श्रेणी में ही आते हैं। साहित्यिक लेख भी निबंध कहे जा सकते हैं, परंतु उनकी भाषा शैली अधिक आकर्षक होती है। निबंध-लेखन के संबंध में ध्यान देने योग्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
- 1. सबसे पहले विषय पर समग्र विचार करके बिंदुओं को मन में बिठा लेना चाहिए।
- 2. इसे प्रभावपूर्ण बनाने के लिए छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए।
- 3. भाषा सरस व सुबोध होनी चाहिए जो पढ़ने वाले को रुचिकर लगे।
- 4. इसकी शैली रोचक होनी चाहिए जो पढ़ने वाले पर प्रभाव डाल सके।
- 5. इसकी भाषा में विराम-चिह्नों का समुचित प्रयोग होना चाहिए।
- 6. मुहावरों के प्रयोग से भी निबंध सशक्त बनता है। इससे निबंध की भाषा शैली में निखार आता है और वह रोचक बन जाता है।
निबंध के भाग
एक अच्छे निबंध के मुख्य रूप से तीन भाग होते हैं:
- आरंभ, भूमिका या प्रस्तावना
- मध्य भाग या कलेवर
- उपसंहार, निष्कर्ष या अंत
आरंभ, भूमिका या प्रस्तावना
निबंध की शुरुआत भूमिका या प्रस्तावना से ही होनी चाहिए। इसे अधिक विस्तार नहीं देना चाहिए। इसे लिखते समय दिए गए विषय से नहीं हटना चाहिए।
मध्य भाग या कलेवर
इस भाग में दिए गए विषय के सभी पहलुओं पर विचार करना चाहिए। विषय से संबंधित सभी बिंदुओं का क्रमानुसार वर्णन इसी भाग के अंतर्गत आता है। छोटे-छोटे वाक्यों में विषय के बिंदुओं को पिरोना चाहिए। भाषा सरल एवं सहज रखनी चाहिए।
उपसंहार, निष्कर्ष या अंत
इस भाग में निबंध का सार तथा निष्कर्ष लिखना चाहिए। इसे अधिक विस्तार नहीं देना चाहिए। आइए, विविध विषयों पर दिए गए निबंधों को पढ़ें और लिखने का अभ्यास करें
1. व्यायाम का महत्त्व
महाकवि कालिदास की एक प्रसिद्ध सूक्ति है-“शरीर मायं खलु धर्मसाधनम्।” अर्थात् धर्म का पहला साधन शरीर है। स्वस्थ हो तो वह सभी धर्मों का निर्वाह कर सकता है। स्वस्थ व बल-संपन्न शरीर का स्वामी ही जीवन में सफलता के शिखर पर पहुँच सकता है। समाज में जिसकी लाठी उसकी भैंस का सिद्धांत ही सदा से प्रचलन में रहा है। शक्तिशाली ही पृथ्वी पर राज्य करता है। सारांश यह है कि शारीरिक बल की बड़ी महिमा है और शारीरिक बल का प्रमुख साधन है-व्यायाम। वे सभी विशिष्ट शारीरिक क्रियाएँ जो शरीर को स्वस्थ व चुस्त-दुरुस्त बनाती हैं, व्यायाम कही जाती हैं। व्यायाम के अनेक भेद हैं। विभिन्न प्रकार के आसन, दंड, बैठक, घुड़सवारी, तैराकी आदि ऐसे व्यायाम हैं, जिन्हें व्यक्ति किसी अन्य की सहायता के बिना अकेला ही कर सकता है। लेकिन हॉकी, कबड्डी, कुश्ती आदि व्यायाम के ऐसे प्रकार हैं जिनमें अन्य व्यक्ति अथवा व्यक्तियों की सहायता आवश्यक होती है।
शारीरिक स्वास्थ्य के लिए व्यायाम अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। व्यायाम करने से व्यक्ति क्रियाशील बना रहता है तथा उसका शरीर सुडौल व सुगठित बना रहता है। रक्त-संचार तथा पाचन शक्ति ठीक रखने में व्यायाम सर्वाधिक सहायक होता है। व्यायामशील व्यक्ति सभी प्रकार के शारीरिक रोगों से मुक्त रहता है। व्यायाम न करने से मनुष्य को अनेक प्रकार की शारीरिक व्याधियाँ (बीमारियाँ)घेर लेती हैं। पाचन शक्ति का बिगड़ जाना, शरीर के जोड़ों में पीड़ा होना, पेट का बढ़ जाना, माँसपेशियों का लटक जाना, सिर में पीड़ा होना आदि शारीरिक कष्ट व्यायाम न करने से हो जाते हैं। व्यायाम से होने वाले लाभों तथा व्यायाम न करने से होने वाली हानियों को देखते हुए यह आवश्यक है कि व्यायाम के विविध साधनों का समुचित विकास किया जाए।
बाल, युवा और वृद्ध सभी की अपनी-अपनी शारीरिक क्षमताएँ और सीमाएँ होती हैं। अतः यह आवश्यक है कि ऐसी व्यायामशालाओं तथा व्यायाम-साधनों का विकास किया जाए जो हर आयु वर्ग के मनुष्यों के अनुकूल हों। छात्रों के लिए स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर व्यायामशालाओं की व्यवस्था की जा सकती है तथा अन्यों के लिए सार्वजनिक पार्कों आदि में व्यायाम के साधन जुटाए जा सकते हैं। शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ नागरिक ही किसी समाज या राष्ट्र की समृद्धि का आधार बनते हैं। अतः आवश्यक है कि हम अपने देश के नागरिकों में व्यायाम के लिए रुचि उत्पन्न करें ताकि वे शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहकर देश के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा सकें।
2. राष्ट्रीय एकता
भारत एक विशाल देश है। यह कटक से कच्छ तक, कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। यह प्रदेशों तथा केंद्रशासित प्रदेशों से मिलकर राष्ट्र का रूप धारण करता है। उसमें भिन्न-भिन्न जातियों, धर्मों, रीति-रिवाजों के लोग रहते हैं। यह देश एक ऐसे हार की भाँति है जिसके रंग-बिरंगे फूलों के समान राज्यों, लोगों को एकता के सूत्र में पिरोया गया है। अनेकता में एकता इस राष्ट्र की विशेषता है। देश का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब कभी विघटनकारी शक्तियों ने अपना सिर उठाया-कभी धर्म, कभी जाति, कभी भाषा तो कभी प्रांत के नाम पर घृणा को उभारा-हमारी एकता को कमजोर करने का प्रयत्न किया तो हमें बहुत हानि उठानी पड़ी। अंग्रेजों द्वारा “फूट डालो, राज करो” की नीति से इस देश का विभाजन किया गया। आज भी कश्मीर समस्या मुँह बाए खड़ी है। राष्ट्र की उन्नति उसकी एकता पर आधारित होती है। आज इस एकता में कई बाधक तत्व स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं। धार्मिक कट्टरता और सांप्रदायिकता के विष जैसी संकुचित भावना ने हमारे देश को कई बार कमज़ोर करने का प्रयत्न किया है। पाकिस्तान का प्रमाण हमारे सामने स्पष्ट है। यही धार्मिक कट्टरता आज देश को कमज़ोर कर रही है। कश्मीर समस्या तथा अन्य सांप्रदायिक झगड़ों के लिए राजनैतिक दल भी जिम्मेदार हैं।
हम भारतवासियों को राष्ट्रीय एकता के बल पर बाधक तत्वों को मुँह-तोड़ जवाब देना चाहिए। राष्ट्रीय एकता में बाधक तत्वों में भाषा समस्या का विशेष हाथ है। इस आधार पर पंजाब व हरियाणा का निर्माण हुआ। गुजरात और महाराष्ट्र की एकता में दरार पड़ सकती है। यदि हम भारतीय भाषाओं में एकता के दर्शन करें तो भावात्मक एकता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। हमारे ग्रंथ, समाज, संस्कृति तथा भाषा सबको एक लड़ी में पिरोने का काम कर रहे हैं।
प्रांतीयता और जातिवाद हमारे राष्ट्र की एक ऐसी समस्या है जिसके कारण हमारे देश को बहुत हानि हुई है। इन्हीं के कारण भारत को विविधताओं का देश भी कहकर पुकारा जाता है। हम सब भारतीयों को मिल-जुलकर रहना चाहिए तथा सरकार के साथ मिलकर इस समस्या को सुलझाना चाहिए ताकि राष्ट्रीय एकता बनी रहे।
हम स्वार्थ, त्याग, धैर्य, सत्य, सहनशीलता, प्रेम, भाईचारे के बल पर अपने देश में राष्ट्रीय एकता को मजबूत करके अच्छे राष्ट्र, प्रांत या समाज के लिए संगठित रहें। हममें उतनी जागरूकता होनी चाहिए कि शत्रु पर कब और कितनी शक्ति के साथ लोहा लेना है। राष्ट्रीय एकता और एकजुटता के साथ हम अपने देश के सामने आने वाली समस्याओं का दृढ़ता के साथ मुकाबला करें। मिल-जुलकर रहते हुए एक-दूसरे की भलाई को ध्यान में रखकर जीने को एकता कहते हैं। यही एकता जब राज्यों या प्रातों में झलकती है तो वह भावनात्मक या राष्ट्रीय एकता कहलाती है। राष्ट्रीय एकता शक्ति को प्रकट करती है। वर्तमान काल में प्रत्येक कठिनाई एकता अर्थात् शक्ति से हल की जा सकती है। अतः हमें छोटी-छोटी बातें भूलकर अपनी तथा देश की भलाई के लिए राष्ट्रीय एकता बनाए रखनी चाहिए।
3. बसंत ऋतु
भारत-भूमि स्वर्ग के समान सुंदर है। यहाँ छह ऋतुएँ बारी-बारी से आकर प्रकृति का श्रृंगार करती हैं। प्रत्येक ऋतु का अपना-अपना महत्त्व है। इन सभी ऋतुओं में बसंत को “ऋतु राज” कहा गया है। बसंत ऋतु सचमुच प्रकृति का यौवन है। इस ऋतु में जिधर भी दृष्टि जाती है, पृथ्वी यौवन के भार से दबी प्रतीत होती है। बसंत ऋतु फरवरी-मार्च के महीनों में आती है। इन दिनों में शरद ऋतु का प्रभाव कम हो जाता है तथा न अधिक गर्मी पड़ती है और न अधिक सर्दी। इस ऋतु में दिन-रात लगभग बराबर होते हैं। शरद ऋतु की कड़ाके की सर्दी को धरती की हरियाली सहन नहीं कर पाती।
फूल मुरझा जाते हैं और पत्ते पीले पड़ जाते हैं। हेमंत ऋतु में पतझड़ होता है तथा पत्ते झड़ जाते हैं। इसके बाद ऋतुराज बसंत का आगमन होता है। पृथ्वी का रोम-रोम सिहर उठता है। समस्त प्रकृति में माधुर्य एवं सुंदरता भर जाती है। पेड़ों पर नए-नए पत्ते निकल आते हैं। आम पर सुनहरा बौर आ जाता है तथा कोयल की कूक सुनाई देने लगती है। उद्यानों में रंग-बिरंगे फूल अपनी सुंदरता बिखेरते हैं तथा भौरे और रंग-बिरंगी तितलियाँ उनके आस-पास मँडराने लगती हैं। ऐसा लगता है मानो वे उनके साथ अठखेलियाँ कर रही हों। सरसों के फूलों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो पृथ्वी ने पीली चादर ओढ़ ली हो। यह ऋतु स्वास्थ्य के लिए अत्यंत उत्तम है। इस ऋतु में शीतल एवं सुगंधित पवन चलती है जिसमें भ्रमण करने से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इस ऋतु में शरीर में नए रक्त का संचार होता है।
बसंत ऋतु का आरंभ बसंत पंचमी के त्योहार से होता है। कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। यह त्योहार समस्त उत्तर भारत में हर्ष एवं उल्लास से मनाया जाता है। बसंत पंचमी को ही ज्ञान की देवी सरस्वती जी का जन्म हुआ था। इसी दिन वीर हकीकत राय ने हिंदू धर्म की बलिवेदी पर अपने प्राणों की बलि दी थी। इस दिन लोग पीले वस्त्र धारण करते हैं। सरस्वती-पूजन करते हैं तथा पीला हलुआ बाँटते हैं। स्थान-स्थान पर बसंत मेलों का आयोजन किया जाता है। “पतंग-उड़ाना” भी इस दिन का महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम होता है। बसंत वास्तव में ऋतुओं का राजा है। प्रकृति का कोना-कोना रोमांचित तथा पुलकित लगता है। मानो यह ऋतुराज का स्वागत कर रहा हो। बसंत के सौंदर्य से प्रेरणा पाकर ही भगत सिंह ने गाया था, “मेरा रंग दे बसंती चोला।“ कवियों ने बसंत ऋतु की प्रशंसा में अनेक कविताएँ लिखी हैं। बसंत उत्साह, उमंग, स्फूर्ति, चेतना एवं उल्लास की ऋतु है।
4. होली
मनुष्य अपने जीवन का प्रत्येक क्षण आनंद और उल्लास से बिताना चाहता है। वह स्वभाव से विनोदप्रिय प्राणी है। वैसे तो सभी त्योहार जीवन में नया उल्लास व नई उमंग भरते हैं लेकिन विशेष रूप से होली हर्ष और आनंद का त्योहार है। यह आशा और आनंद का त्योहार है। इसे सभी जातियों के लोग बड़े प्रेम से मनाते हैं। होली के त्योहार का संबंध पौराणिक कथा के साथ जुड़ा हुआ है।
कहा जाता है कि सतयुग में हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्यंत बलवान, अहंकारी और दुष्ट नास्तिक राजा था। वह अपने-आपको ईश्वर समझता था। उसने अपने राज्य में यह घोषणा करवा दी थी कि कोई भी भगवान की पूजा न करे। सभी उसी की उपासना करें। प्रजा डर के मारे उसकी पूजा करने लगी। परंतु उसका अपना पुत्र प्रहलाद ईश्वर-भक्त था। गुस्से में आकर पिता ने पुत्र को मार डालने के लिए अपनी बहन होलिका की शरण ली। होलिका प्रहलाद को गोदी में लेकर जलती आग में बैठ गई। देखते-ही-देखते होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद का बाल भी बाँका न हुआ। यह कथा सच्ची है अथवा कल्पित इसे कह नहीं सकते। परंतु इससे यह पता चलता है कि पाप और अत्याचार की सदा पराजय होती है और न्याय, धर्म तथा सत्य की विजय होती है। होली के दूसरे दिन लोग सवेरे-सवेरे रंग-गुलाल लेकर निकल पड़ते हैं। लोग पिचकारियों से रंग छोड़ने जाते हैं। एक-दूसरे के गले मिलते हैं। इस प्रकार सारा दिन मौज और मस्ती में गुजरता है।
परंतु आजकल होली के इस पवित्र त्योहार में कुछ बुराइयाँ पैदा हो गई हैं। लोग अक्सर शराब पीने लगे हैं। इस त्योहार से गलत परंपराएँ जुड़ती जा रही हैं। लोग रंग-गुलाल की जगह पेंट-वार्निश, कीचड़ आदि का प्रयोग करने लगे हैं जिससे यह भय का पर्व बन गया है। होली भारत का सांस्कृतिक त्योहार है। यह सांप्रदायिक एकता का प्रतीक है। दुर्व्यसनों में पड़कर हमें त्योहार के वास्तविक महत्त्व को नहीं भूलना चाहिए। हमें होली इस तरह मनानी चाहिए जिससे अपने साथ-साथ सभी को आनंद मिले। तभी हम इस उत्सव की सांस्कृतिक गरिमा को बनाए रख सकते हैं।
5. दिल्ली मेट्रो
दिल्ली एक महानगर है जिसकी जनसंख्या एक करोड़ से भी अधिक है। दिल्ली वासियों के समक्ष यातायात की समस्या बनी रहती है। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए 24 दिसम्बर 2002 को दिल्ली मेट्रो का शुभारंभ किया गया। प्रारंभिक चरण में यह सेवा शाहदरा से तीस हजारी तक थी जिसकी लंबाई 8.3 कि. मी. है। तत्पश्चात् इस सेवा का विस्तार विश्वविद्यालय, रिठाला, द्वारिका तथा केन्द्रीय सचिवालय तक कर दिया गया। इस योजना के विस्तार का कर्म युद्ध स्तर पर किया जा रहा है। इसे नौएडा, गुड़गाँव, वैशाली, फरीदाबाद तथा अन्य कई स्थानों तक पहुँचा दिया गया है।
दिल्ली की मेट्रो सेवा दुनिया की आधुनिकतम सेवा है। इसके सभी दरवाजे स्वचालित हैं। इसकी यात्रा के लिए स्वचालित किराया वसूली प्रणाली को अपनाया गया है। यह सेवा या तो भूमिगत है या खंबों के ऊपर ताकि वर्तमान यातायात व्यवस्था में कोई रुकावट न आ सके। इसके कोच में 80 से 100 यात्री सफर कर सकते हैं तथा कोच पूर्णतः वातानुकूलित हैं। मेट्रो रेल में यात्रियों की प्रत्येक सुविधा का ध्यान रखा गया है। स्टेशन परिसरों में खाद्य वस्तुओं, दवाइयों, अखबारों आदि की सुविधा के लिए बूथ बनाए गए हैं। यात्रा के लिए स्मार्ट कार्ड तथा टोकन लेने की व्यवस्था की गई है। यह सारा काम स्वचालित ढंग से संपन्न किया जाता है।
मेट्रो रेल से यात्रा अत्यंत सुरक्षित, सुविधाजनक, प्रदूषण रहित, समय की बचत एवं कम खर्च वाली है। इस व्यवस्था को सुचारू रखने के लिए हमें पूर्ण सहयोग देना चाहिए। इससे प्रदूषण से मुक्ति मिलेगी, समय की बचत होगी तथा हम उन्नति की राह पर चलेंगे। हमें इस बात का गर्व होना चाहिए कि हम विश्वस्तरीय सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं।
6. विद्यार्थी जीवन और अनुशासन
विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का बड़ा महत्त्व है। आज का विद्यार्थी राष्ट्र का भावी निर्माता है। वैसे तो व्यक्ति जीवन-भर कुछ न कुछ सीखता ही रहता है, लेकिन विद्यार्थी जीवन में व्यक्ति जो कुछ भी सीखता है, उसी पर उसका भावी जीवन निर्भर होता है। विद्यार्थी और अनुशासन का आपस में गहरा संबंध है। बिना अनुशासित हुए विद्यार्थी ठीक से विद्या ग्रहण नहीं कर पाता। अनुशासन ही उन्नति का द्वार है। अनुशासित व्यक्ति के मन की चंचलता समाप्त हो जाती है। उसकी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं हो पाता। अतः वह दिन दूनी, रात चौगुनी उन्नति करने लगता है।
आजकल हमारी नवयुवा पीढ़ी अनुशासन से विमुख हो रही है। यह बहुत ही चिंता का विषय है। आज शिक्षण-संस्थाओं का भी प्रबंध अच्छा नहीं है। अध्ययन के लिए उपयोगी सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं। इस कारण छात्रों में पढ़ाई के प्रति उदासीनता बढ़ती जा रही है। छात्रों में अनुशासनहीनता पनपने के कई कारण हैं- अभिभावकों और शिक्षकों के बीच संपर्क का अभाव, अध्यापकों का अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक न रहना आदि ऐसे कई कारण हैं जिनसे छात्रों में अनुशासनहीनता पनपने लगी है।
अनुशासनहीनता बहुत हद तक दूर हो सकती है। जैसे- शिक्षा पद्धति में परिवर्तन करके ऐसी शिक्षा जिसमें विद्यार्थियों का नैतिक, चारित्रिक विकास हो सके, ऐसी शिक्षा जिसमें विद्यार्थी जीविकोपार्जन के योग्य बन सकें, होनी चाहिए। इन सबसे विद्यार्थियों में असंतोष बहुत हद तक दूर हो जाएगा। उनमें अनुशासन के प्रति लगाव उत्पन्न होगा। अभिभावक और अध्यापक दोनों मिलकर छात्रों के नैतिक सुधार की ओर विशेष रूप से ध्यान देंगे।
अंत में, कहा जा सकता है कि यदि हमें राष्ट्र को अनुशासित बनाना है तो नई पीढ़ी को अपने छात्र जीवन से ही अनुशासन का पाठ पढ़ाना होगा। उसी पर स्वस्थ समाज और दृढ़ राष्ट्र की नींव डाली जा सकती है।
7. कंप्यूटर के लाभ एवं हानियाँ
लेखन तथा गणना के क्षेत्र में विगत पाँच दशकों में आश्चर्यजनक प्रगति हुई है। कंप्यूटर भी इन्हीं आश्चर्यजनक आविष्कारों में से एक है। आज दफ्तरों, स्टेशनों, बड़ी-बड़ी कंपनियों, टेलीफोन एक्सचेंजों आदि अन्य अनेक ऐसे कल-कारखानों में जहाँ गणना करने अथवा काफी मात्रा में छपाई का काम करने की जरूरत होती है, वहाँ भी कंप्यूटर लगाए गए हैं ताकि मानवों की संख्या में कटौती की जा सके। कंप्यूटर अब वह काम भी करने लगे हैं जो मानव के लिए काफी श्रम-साध्य तथा समय लेने लगे हैं।
वैसे तो कंप्यूटर का इतिहास काफी प्राचीन माना जा सकता है। कुछ लोगों का अनुमान है कि मानव ने लगभग 25000 वर्ष पहले वस्तुओं को गिनना सीखा होगा और तभी से कंप्यूटर के आविष्कार की नींव पड़ी होगी। किंतु यह कहना कहाँ तक तर्कसंगत है। गिनने के लिए उस समय कंकड़-पत्थर, लकीरों अथवा अन्य किन्हीं सहज उपलब्ध वस्तुओं को उसने अपनाया होगा। कंप्यूटर की पहली परिकल्पना सन् 1642 में साकार हुई जब जर्मन वैज्ञानिक ब्लेज पॉस्कल ने संसार का पहला सरल कंप्यूटर तैयार किया था। इस कंप्यूटर में ऐसी कोई खास जटिलता नहीं थी, फिर भी अपने समय में यह आम लोगों के लिए एक कौतूहल का विषय अवश्य था।
वर्तमान कंप्यूटर डॉ. हरमन के प्रयासों का अति आधुनिक विकसित रूप है।कंप्यूटर का निरंतर विकास हो रहा है। ई. सी. जी., रोबोट, मानसिक कंपन, रक्तचाप तथा न जाने कितने जीवन-रक्षक कार्यों के लिए कंप्यूटर का उपयोग किया जाता है। अमेरिका, फ्रांस, जर्मन, रूस, हालैंड, स्वीडन, ग्रेट ब्रिटेन जैसे-स्मृद्ध देशों में इसका स्थान मनुष्य के दूसरे दिमाग के रूप में माना जाता है। भारत में भी कंप्यूटर विज्ञान की निरंतर प्रगति होती जा रही है। अब भारत भी इस क्षेत्र में समुन्नत देशों की बराबरी करने लगा है। कंप्यूटर एक जटिल गणना प्रणाली का नाम है। इस प्रणाली के अनेक रूप हैं। वर्ड प्रोसेसर, इलेक्ट्रॉनिक टाइपराइटर तथा उसमें मेमॉरी आदि का प्रावधान कंप्यूटर चालन के सिद्धांतों पर आधारित है। कल-पुर्जे तैयार करने, डाक छाँटने, रेल पथ संचालन हेतु संकेत देने, अंतरिक्ष अनुसंधान, वायुयान की गति, ऊँचाई आदि का निर्देशन, टिकट बाँटने, मुद्रण, वीडियो खेल आदि अनेकानेक कार्यों के लिए कंप्यूटर का प्रयोग बढ़ता ही जा रहा है।
हमारे देश में सर्वप्रथम सन् 1961 में कंप्यूटर आया था। तब से आज तक अनेक समुन्नत देशों से प्राप्त जानकारी हमारे लिए काफी लाभप्रद सिद्ध हुई है। अब हम स्वदेश में ही अनेक प्रकार के कंप्यूटर बनाने में सक्षम होते जा रहे हैं। हजारों की संख्या में, विविध कार्यों के लिए कंप्यूटरों का सहारा लिया जा रहा है। बिजली के बिल, वेतन बिल, टिकट वितरण तथा बैंकिग कार्यों के लिए कंप्यूटरों का उपयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है। संघ लोक सेवा आयोग तथा विविध परीक्षा बोर्डों में बैठने वाले सहस्रों लोगों की अंक-तालिकाएँ, रोल नंबर आदि तैयार करना कंप्यूटर की वजह से ही सुसाध्य तथा संभव हो सका है।
आज कंप्यूटर के विविध तथा बहुक्षेत्रीय उपयोग हो रहे हैं। भारत में कंप्यूटर कितने लाभप्रद तथा कितने अलाभकारी हैं- इस पर भी विचार करना जरूरी है। यह बात तो हमें स्वीकार कर ही लेनी चाहिए कि कंप्यूटर भी मानव-निर्मित उपकरण है, जिसमें आंकड़े, सूचनाएँ, अंक, हिसाब-किताब आदि मानव द्वारा ही भरे जाते हैं। अतः यदि मानव से कोई त्रुटि हो जाए तो वह कंप्यटूर में बार-बार तब तक होती रहेगी जब तक वह सुधारी न जाए। अतः यह कहना कि कंप्यूटर गलती नहीं करता, एक गंभीर तथ्य को अस्वीकार करना है। हमारा देश निर्धन देश है जहाँ प्रतिवर्ष हजारों नहीं लाखों की संख्या में बेकार युवक बढ़ते जा रहे हैं। बेकारी घटने का उचित तरीका तो यही होगा कि अधिक से अधिक लोगों को रोजगार दिया जाए। उन्हें विविध उत्पादक कार्यों में लगाया जाए ताकि देश में युवा लोगों का उपयोग हो सके।
कंप्यूटर विज्ञान का उपहार है जिसे प्रयोग न करना आज के युग में संभव नहीं है। इसलिए कंप्यूटरीकरण भी आज समय की माँग बन चुका है। भारत में लगभग सभी निजी व्यावसायिक संस्थानों, बैंकों, कई सरकारी संस्थानों व सेवाओं को कंप्यूटरीकृत किया जा चुका है। भविष्य में भी यह उन्नति जारी होगी।
8. देशभक्ति
देशभक्ति का शाब्दिक अर्थ है- देश के प्रति प्रेम, उसके प्रति अनुराग। ये धरती ऊँची पर्वतश्रेणियाँ, ये खेत-खलिहान यही सब कुछ मिलकर देश बनता है! पर देश का सच्चा स्वरूप उसके रोड़े-पत्थरों में नहीं है, वह उसके निवासियों में विद्यमान है। जो व्यक्ति देशभक्त होता है, वह अपने व्यक्तिगत हितों, अपने परिवार के हितों, अपने नगरवासियों के हितों और अपने देश के लोगों के हितों की रक्षा अवश्य करता है। किंतु जहाँ देशहित पर आँच आती है, वहाँ वह अपने सर्वहितों का विचार एकदम भूल जाता है। देशभक्त के सामने सबसे ऊपर एक ही विचार रहता है और वह है देश का विचार। इसके अनेक पहलू उसकी आँखों के सामने रहते हैं- देश की एकता, देश का गौरव, देश का सम्मान, देश की समृद्धि और देश की निरंतर प्रगति। देशभक्त किसी की बपौती नहीं है। इसके लिए न धनी होना आवश्यक है न शक्तिशाली होना। धनी या निर्धन, शक्तिशाली या निर्बल हरेक व्यक्ति देशभक्त हो सकता है। देशभक्ति का संबंध मनुष्य की भावना से है। जिसके मन में राष्ट्रहित की जितनी प्रबल भावना होती है वह उतना ही बड़ा देशभक्त है।
सामान्य अवस्था में देशभक्ति की भावना को समझने से पूर्व इतना जान लेना आवश्यक है कि देशभक्ति एक तरह से कर्तव्य का ही दूसरा नाम है। दूसरे शब्दों में, अच्छा नागरिक अच्छा देशभक्त हो सकता है। सामान्य स्थिति में कर्तव्य की भावना का स्तर मंद अथवा शांत रहता है। वही विशेष स्थिति में, अर्थात् संकट की घड़ी में अधिक मुखर हो जाता है। ऐसा आदर्श नागरिक जो राष्ट्र के प्रति वफादार हो, सच्चे अर्थों में देशभक्त कहा जाएगा। जो व्यक्ति देश के गौरव और सम्मान को अपना गौरव और अपना सम्मान समझता है, वह बड़ा देशभक्त है। इसके विपरीत, जो देश के गौरव और सम्मान को अपना गौरव, सम्मान नहीं समझता, वह उतना ही बड़ा देशद्रोही है। जो सैनिक देश की शत्रुओं से रक्षा करता है, वह सच्चा देशभक्त है। जो किसान निष्ठा के साथ अन्न और धान्य उपजाकर देशभर का भरण-पोषण करता है, वह सच्चा देशभक्त है। जो उद्योगपति, मिल-मालिक अथवा व्यापारी ईमानदारी से धन संग्रह करता है, वह देशभक्त है। मिल-मजदूर, फैक्ट्री का कर्मचारी या दुकान का नौकर जब ईमानदारी से अपना काम करता है तो वह भी देशभक्त का दर्जा पाने का अधिकारी है। यदि वह परिवार के निजी हितों को, समाज के लिए पारिवारिक हितों को और राष्ट्र के लिए निजी, पारिवारिक और सामाजिक हितों को गौण समझता है तो वह सच्चा देशभक्त है। जो अध्यापक छात्रों को बिना भेदभाव के विद्यादान देता है, सच्चा राष्ट्रसेवक है।
इसी प्रकार किसी भी पेशे का व्यक्ति, जिसे अपने देश से प्यार है और जो देश के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करने से नहीं चूकता, देश का सच्चा सेवक होता है। एक रेलवे इंजन-ड्राइवर, एक बस-कंडक्टर, एक क्लर्क, एक पोस्टमेन, एक दुकानदार, एक जमादार, जो लोग ईमानदारी से अपने-अपने काम को अंजाम देते हैं- ये सभी के सभी परोक्ष रूप में देश की महान सेवा करते हैं।
अभिप्राय यह है कि अपनी निष्ठा के रहते, चपरासी भी महान देशभक्त होता है, और देश के प्रति अपने उत्तरदायित्व से भ्रष्ट होकर मंत्री तक भी देशद्रोही की संज्ञा पा सकता है। हम अपने प्रति सच्चे रहें, अपने कुल-परिवार के लिए सच्चे रहें और इससे बढ़कर हम अपने देश के प्रति सच्चे रहें; यही देश-प्रेम का महान आदर्श है। सभी भेदभाव भुलाकर, सभी पूर्वाग्रहों को मन से निकालकर अपने देशवासियों के प्रति हमारे मन में भाईचारे की भावना जागृत हो; यही सच्चे राष्ट्र-प्रेम की निशानी है। हमारा देश एकजुट होकर उन्नति करे, हमारे देश का नाम अमर रहे, हमारा झंडा ऊँचा रहे। हम किसी से दबें नहीं, हम किसी से झुकें नहीं। भले ही हमारे धर्म और संप्रदाय अलग-अलग हैं, हमारे गाँव, नगर और प्रदेश अलग-अलग हैं, पर हम सब एक महान देश के नागरिक हैं। हम अपने देश के प्रति सच्चे रहेंगे- यह भावना देशभक्ति की ही भावना है।
बच्चो, आप भी बड़े होकर ईमानदारी से काम करना। ऐसा कोई काम न करना जिससे हमारे देश को हानि हो। तब तुम भी देशभक्त कहलाओगे।
9. भारत की बढ़ती जनसंख्या
हमारा देश भारत बहुत बड़ा है। आकार को ध्यान में रखते हुए इस देश की जनसंख्या कहीं ज्यादा है। यह चीन के बाद सबसे अधिक आबादी वाला राष्ट्र है। भारत में इस समय भी आवास, भोजन, रोजगार की काफी कमी है। यही नहीं हवा, पानी जैसी प्रकृति-प्रदत्त सुविधाएँ भी निरंतर प्रदूषित होती जा रही हैं। प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है। प्रत्येक देश के लिए उतनी ही जनसंख्या काफी होती है जितनी कि रहने के लिए आवास, भोजन, वस्त्र तथा रोजगार उपलब्ध कराया जा सके। देशवासियों की खुशहाली से एक अच्छी सामाजिक व्यवस्था सुदृढ़ होती है। देश में महँगाई, बेरोजगारी, गरीबी एवं चरित्र का गिरना यह सूचित करता है कि हम अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या की थाड़ा भी परवाह नहीं कर रहे हैं।
जिन देशों की सीमाएँ लंबी-चौड़ी हैं, उनके पास भू-भाग बहुत हैं तथा वन-संपदा एवं भू-संपदा की कमी नहीं है। उन देशों में यदि जनसंख्या बढ़ती है तो कोई चिंता की बात नहीं है। किंतु जहाँ स्थिति विपरीत हो वहाँ नागरिकों तथा सरकार का यह सबसे पहला कर्तव्य होता है कि पूरे मन से जनसंख्या में हो रही वृद्धि को नैतिक, प्राकृतिक एवं वृहत्रिम उपायों से जरूर रोका जाए। कुछ अन्य देश ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या ज्यादा है, जैसे जापान, इंग्लैड आदि। किंतु इन छोटे-छोटे देशों ने उद्योग धंधे के क्षेत्र में इतनी अधिक प्रगति कर ली है कि उन्हें जनसंख्या की वृद्धि की ज्यादा चिंता नहीं है। इसके अतिरिक्त व्हाँ के लोग जनसंख्या को नियंत्रित करने में अपना योगदान देते हैं। हमारे देश में संसाधनों में विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत जो वृद्धि हो रही है, जनसंख्या में वृद्धि उससे कहीं ज्यादा हो रही है। यदि इसी रफ्तार से वृद्धि होती रही तो संसाधनों की कमी पड़ जाएगी।
जनसंख्या में होने वाली वृद्धि से जो समस्याएँ पैदा होती हैं, वे अलग-अलग प्रकार की होती हैं। इसके अलावा 0-7 वर्ष के आयु वर्ग में 15,78,63,145 बच्चे हैं। क्या उनके लिए दूध एवं खाद्य पदार्थों की जरूरत नहीं पड़ेगी? कपड़ा आवास, औषधियाँ बच्चों के लिए जरूरी होते हैं। साधन न होने से इनकी कमी कैसे पूरी की जा सकेगी? जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए सरकार तथा जनता दोनों को मिलकर काम करना होगा, तभी इसमें सफलता मिल पाएगी। प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में परिवार नियोजन के लिए अपार धनराशि निर्धारित करनी पड़ेगी। गर्भ निरोधक औषधियाँ, स्वास्थ्य संबंधी परामर्श की व्यवस्था इतने अंतर पर करनी चाहिए ताकि दंपतियों तथा छोटे बच्चों को उचित सलाह लेने के लिए भागना न पड़े।
सरकारी लाभों को सीमित करके जैसे सरकार की तरफ से ऐसा ऐलान होना चाहिए कि राशन, चिकित्सा, ऋण आदि की सुविधाएँ केवल उन दंपतियों को मिलेंगी जिनकी केवल दो संतानें होंगी। सरकारी नौकरी में भी उन्हीं को तरक्की दी जानी चाहिए जिनके दो से अधिक बच्चे न हों। यदि इस प्रकार के कुछ नियम बनाए जाएँ तथा कुछ अवरोध लगाया जाए, तो एक दशक के भीतर जनसंख्या को काफी सीमा तक काबू किया जा सकता है।